उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में मूल निवास और भू-कानून का मुद्दा खासा गरमाया हुआ है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल मसले को लेकर सरकार पर लगातार हमला बोल रहे हैं। वहीं, सरकार का कहना है मूल निवास प्रमाणपत्र के मानक तय करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई है।
यह समिति न केवल राज्य में लागू भू-कानूनों के प्रारूप की निगरानी करेगी, बल्कि मूल निवास प्रमाणपत्र जारी करने के लिए नियम स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएगी। उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद भी यहां अविभाजित उत्तर प्रदेश का भू-कानून 1960 लागू था। 2003 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसमें संशोधन किया और राज्य का भू-कानून अस्तित्व में आया।
इसके बाद वर्ष 2008 और फिर 2018 में इसमें संशोधन हुआ। विपक्ष का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों के नाम पर जमीन खरीदने की बाध्यता को समाप्त किया गया, जबकि कृषि भूमि का उपयोग बदलने की प्रक्रिया भी आसान कर दी गई। जिससे पहाड़ की जमीनों को बचाना बड़ी चुनौती है।
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