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उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में है काशी विश्वनाथ मंदिर

उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में है काशी विश्वनाथ मंदिर
Photo Credit To सोनिया मिश्रा

उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में काशी विश्वनाथ मंदिर श्री केदारनाथ धाम मार्ग पर मंदिर स्थित है. यह भगवान केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है. मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवों ने कौरवों की हत्या कर दी थी, तब उन्हें गोत्र हत्या का पाप लग गया था, जिसके निवारण के लिए पांडव भगवान शिव की खोज में निकले थे लेकिन भोलेनाथ पांडवों से नहीं मिलना चाहते थे, इसलिए वह उनसे बचकर दूर छिप रहे थे.

भगवान शिव हिमालय के इसी गुप्तकाशी नामक स्थान पर ध्यान मग्न थे और जब भगवान को पता चला कि पांडव इसी स्थान पर आ रहे हैं, तो वह यहीं से नंदी रूप धारण कर अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें कि गुप्त हो गए. तब से इस स्थान का नाम गुप्तकाशी से जाना जाने लगा. वहीं यहां भगवान शिव पार्वती को समर्पित अर्ध नारीश्वर मंदिर भी स्थित है, जहां भगवान शिव अर्धनारी के रूप में विराजमान हैं.

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मंदिर के मुख्य पुजारी शशि लिंगधर बताते हैं कि पांडव गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए उत्तराखंड के इस स्थान पर आए थे और भगवान शिव क्योंकि पांडवों से रूष्ट थे, इसलिए वह पांडवों से दूरी बना रहे थे. साथ ही उन्होंने बताया कि मंदिर के निकट ही बाई ओर से गुप्त गंगा और दाई ओर से गुप्त यमुना बहती है और इन दोनों का मिलन निकट ही स्थित मणिकर्णिका कुंड में होता है.

पांडव इसी कुंड से भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए जल ले गए थे. उसके बाद पांडवों ने इस स्थान पर माता पार्वती का ध्यान किया. जिसके बाद माता ने यहां अर्धनारीश्वर रूप (आधा पुरुष और आधा स्त्री) में दर्शन दिए.

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उन्होंने आगे बताया कि अर्धनारीश्वरमंदिर भी विश्वनाथ मंदिर परिसर के निकट स्थित है. उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर से रुद्रप्रयाग का विश्वनाथ मंदिर अलग है. पुजारी शशि लिंगधर ने बताया कि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव प्रकट हुए थे, इसलिए उन्हें प्रकट काशी के नाम से जाना जाता है जबकि रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी में भगवान शिव गुप्त हो गए थे, इसलिए यह गुप्तकाशी कहलाया.

विश्वनाथ मंदिर में मुख्य रूप से अन्नकूट का मेला रक्षाबंधन के एक दिन पहले लगता है, जिसमें कि केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी पूजा अर्चना करते हैं और उसके बाद अनाज जैसे- झंगोरा, चावल, कौणी आदि का लेप लगाकरस्वयंभू शिवलिंग का श्रृंगार करते हैं. दर्शन के बाद अनाज के इस लेप को यहां से हटाकर किसी साफ स्थान पर विसर्जित किया जाता है. साथ हीरावणी त्रियोदशी और महाशिवरात्रि पर भी यहां पूजन का विशेष महत्व है.

Post source : सोनिया मिश्रा

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