
अगले वर्ष से कैलाश मानसरोवर यात्रा आसान हो जाएगी. श्रद्धालुओं को यात्रा के दौरान पैदल नहीं चलना पड़ेगा. पूरी यात्रा मोटरेबल हो जाएगी. यानी श्रद्धालु वाहन से धारचूला से सीधा कैलाश मानसरोवर वाहन से पहुंच सकेंगे. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी संसद में इस संबंध में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि रोड बनने के बाद श्रद्धालुओं के साथ साथ सुरक्षा बलों और स्थानीय नागरिकों का आवागमन आसान हो जाएगा.
मौजूदा समय धारचूला से कैलाश मानसरोवर तक पहुंचने में चार से पांच दिन लग जाते हैं. इस दौरान रास्ते में श्रद्धालुओं को रात में रुकना पड़ता है और पैदल चलना पड़ता है. बॉर्डर रोड आर्गनाइजेशन चीन सीमा को जोड़ने वाली सामरिक महत्व की घट्टाबगड़-लिपुलेख सड़क को पक्का कर रहा है. इस रोड के पक्की होने के बाद श्रद्धालु कुछ घंटे में धारचूला से कैलाश मानसरोवर पहुंच सकेंगे.
केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने लोकसभा में बताया कि दिसंबर 2023 तक सड़क निर्माण का काम पूरा हो जाएगा. वर्ष 2006 में गर्बाधार से लिपुलेख तक सड़क का निर्माण शुरू किया गया था. तब वर्ष 2012 तक इस सड़क का कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण तय समय पर सड़क नहीं कट सकी. मालपा सहित अन्य स्थानों पर बेहद कठोर चट्टानों को काटने के लिए आधुनिक मशीनों को हेलिकॉप्टर से वहां पहुंचाया गया.
बीआरओ के लंबे प्रयासों के बाद चीन सीमा को जोड़ने वाली 95 किमी लंबी इस घट्टाबगड़-लिपुलेख सड़क की कटिंग का कार्य जून 2020 में पूरा हो चुका है. धारचूला में अंतरराष्ट्रीय सीमा का एक हिस्सा नेपाल से तो दूसरा चीन से लगा है. दुश्मन पर नजर रखने के लिए सीमा पर बार्डर आउट पोस्ट बनाए गए हैं. सड़क बनने से पहले सेना के जवानों के लिए रसद से लेकर अन्य जरूरी सामान घोड़े खच्चरों से पहुंचाया जाता था. धारचूला से सीमा तक पहुंचने में चार दिन का समय लगता है. सड़क बनने से आपूर्ति आसान हो जाएगी. घाटी के माइग्रेशन वाले गांवों बूंदी, गर्ब्यांग, नपलचु, गुंजी, नाबी, रोंकांग, कुटी के साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा, कैलाश, ओम पर्वत के साथ ही भारत-चीन व्यापार भी सुगम होगा.
अभी का सफर
देश के किसी कोने से आने वाले तीर्थयात्री पिथौरागढ़ या फिर अल्मोड़ा होकर धारचूला पहुंचते हैं. फिर 35 किमी. गाड़ियों से सवार होकर मंगती नाला पहुंचते हैं. यहां से जिप्ती-गाला 8 किमी. पैदल चलकर पहुंचते है और रात रात यहीं गुजारनी होती है. दूसरे दिन 27 किमी. पैदलकर घटियाबगर, लखनपुर, नजांगगाद, मालपा, लामारी होते हुए बूदी पहुंचते हैं.यह दूसरा पड़ाव होता है. तीसरे दिन 17 किमी. का पैदल सफर करते हुए गूंजी पहुंचते थे, तीसरी और चौथी रात शरीर को मौसम के अनुसार एर्डजस्ट और मेडिकल जांच कराने के लिए यहीं रुकना पड़ता है. पांचवें दिन कालापानी होते हुए नबीडांग 18 किमी. का सफर तय करते हैं. यहां रात गुजारने के बाद लिपूलेख पहुंचते हैं, जहां से चीन की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं.
रोड पक्की होने के बाद यात्रा
धारचूला रात रुकने के बाद अगले दिन यात्रा शुरू कर सकेंगे और यहां से तीर्थयात्री एक ही दिन में 74 किमी. का सफर गाड़ियों से करीब 6 घंटे में पूरा कर गूंजी पहुंचेंगे. अगले दिन 3 घंटे का सफर कर गूंजी पहुंचेंगे. इस तरह कुछ घंटे में यात्रा पूरी की जा सकेगी.
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