सिर्फ मोहम्मद रफी को छोड़ दिया… क्यों खोद दी गईं मधुबाला और साहिर लुधियानवी की कब्रें? जानता है सिर्फ एक इंसान

सिर्फ मोहम्मद रफी को छोड़ दिया… क्यों खोद दी गईं मधुबाला और साहिर लुधियानवी की कब्रें? जानता है सिर्फ एक इंसान

Mohammed Rafi Grave Mystery: साल 1980 में जब मशहूर सिंगर मोहम्मद रफी का निधन हुआ, तो उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए. हिंदी सिनेमा के सबसे लीजेंड प्लेबैक सिंगर माने जाने वाले रफी सिर्फ 55 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था. वे डायबिटीज और दिल की बीमारी से जूझ रहे थे. उन्हें जुहू मुस्लिम कब्रिस्तान में दफनाया गया था. उनके अंतिम संस्कार में अमिताभ बच्चन, यश चोपड़ा और अमजद खान जैसे बड़े कलाकार शामिल हुए थे.

साल 2010 में एक खबर आई, जिसने सभी को हैरान कर दिया कि जुहू मुस्लिम कब्रिस्तान में कई कब्रों पर तीन फीट मिट्टी डाल दी गई थी ताकि नए शव दफनाए जा सकें. इसके साथ ही स्थायी कब्रों के निशान हटा दिए गए. इसी वजह से मोहम्मद रफी के बेटे शाहिद को भी अपने पिता की असली कब्र पहचानने में परेशानी हुई. हालांकि, कब्रिस्तान की रखवाली करने वाले शख्स ने उन्हें भरोसा दिलाया कि रफी साहब की कब्र को नहीं छेड़ा गया.

बेटे शाहिद का खुलासा

अपने एक इंटरव्यू में शाहिद ने खुलासा करते हुए बताया कि उन्हें अपने ससुराल पक्ष में किसी की मौत के बाद ही ये सच पता चला. जब वो चार महीने पहले जुहू कब्रिस्तान गए तो उन्होंने कब्रिस्तान के कर्मचारियों से कहा कि वो अपने पिता की कब्र पहचान नहीं पा रहे हैं. इस पर केयरटेकर ने भरोसा दिलाते हुए कहा कि रफी साहब की कब्र अब भी वहीं है और उस पर किसी को दफनाया नहीं गया. शाहिद ने बताया कि इस्लाम में स्थायी कब्र बनाना मना है और कुछ समय बाद एक ही जगह पर नए शव दफनाए जा सकते हैं.

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इस्लामी नियमों की वजह

उन्होंने साफ कहा कि वे इस बात से नाराज नहीं हैं, क्योंकि उनके पिता खुद बहुत धार्मिक इंसान थे और उन्हें भी इससे कोई आपत्ति नहीं होती. उन्होंने बताया कि लोग नाराज जरूर हुए, लेकिन ये सब धर्म और नियमों के मुताबिक ही हुआ. 2010 में ये मामला विवादों में आया था. मुस्लिम मजलिस के अध्यक्ष असगर अली ने बताया था कि इस्लाम में स्मारक जैसी कब्रें बनाने की इजाजत नहीं है. उन्होंने कहा कि जगह की कमी के चलते पुरानी कब्रों पर नए शव दफनाने पड़ते हैं. हालांकि, मधुबाला की बहन मधुर भूषण इस बात से नाराज थी. 

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आज भी जिंदा हैं यादें

उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि जब उन्हें कब्र सजाने की इजाजत दी गई थी तो अब उसे क्यों हटाया गया? रफी साहब के चाहने वालों ने उनकी कब्र को पहचानने का अलग तरीका ढूंढ लिया. कई लोगों ने बताया कि कब्र का पत्थर हटने के बाद वे पास के नारियल के पेड़ को निशान मानकर वहीं दुआ करते हैं. शाहिद के मुताबिक कब्र का ढांचा जरूर हटा दिया गया है, लेकिन रफी साहब की कब्र को कभी छुआ नहीं गया. ये उनके लिए राहत की बात है कि आज भी उस जगह पर उनके पिता की असली यादें बाकी हैं.

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