पिछले पांच साल के दौरान उत्तराखंड के शहरी स्थानीय निकायों में 93 फीसदी गरीबों को सस्ता घर देने का सपना अधूरा रह गया। घर बनाने के लिए निकायों को पांच हजार से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से तीन हजार से अधिक वास्तविक लाभार्थी पाए गए। इनमें से भी सिर्फ 210 लाभार्थियों की सस्ता घर पाने की मुराद पूरी हो सकी। यानी सात फीसदी को ही सस्ता घर मिल सका।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। कैग ने शहरी क्षेत्र स्थानीय निकायों के माध्यम से प्रधानमंत्री आवास योजना के ऑडिट में यह भारी गड़बड़ी पकड़ी है।
कैग ने देहरादून नगर निगम समेत प्रदेश की 19 निकायों में सस्ता घर योजना के आवेदनों की नमूना जांच में यह अनियमितता उजागर की है।
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