
चार धाम यात्रा चरम पर चल रही है तब उत्तराखंड का परिवहन विभाग अपनी दयनीय हालत के कारण सुर्खियों में है. चार धाम रूट पर इस तरह की बीमार बसें चलाई जा रही हैं, जो कभी भी किसी हादसे का शिकार हो सकती हैं. बद्रीनाथ पहुंची एक बस एक हफ्ते से खराब पड़ी है, जिसे जेसीबी के तार से खींचने की कोशिश भी की गई. इधर, मैदानी हिस्सों में 100 से ज़्यादा रिटायर्ड बसें चल रही हैं, जिन्हें चलाने से कई ड्राइवर मना कर चुके हैं लेकिन विभाग का कहना वही है कि सब नियम के अनुसार हो रहा है.
पहले बात करें बद्रीनाथ रूट की, तो यात्रा मार्ग पर जो रोडवेज़ बसें चलाई जा रही हैं, वो या तो खराब हैं या फिर उनके परमिट रद्द हुए हैं. उससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. बद्रीनाथ धाम में ऋषिकेश डिपो की एक बस यात्रियों को भर कर पहुंची लेकिन 12 मई से खराब पड़ी है. इस बस को धकेलने के लिए जेसीबी पर तार बांधकर कोशिश भी की गई, लेकिन बस स्टार्ट नहीं हो सकी.
बसों की यह दुर्गति केवल चार धाम यात्रा मार्ग पर ही नहीं, बल्कि शेष उत्तराखंड खासकर मैदानी हिस्सों में भी साफ नज़र आ रही है. संवाददाता भारती सकलानी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि लोकल रूट पर नीलामी के लिए रखी 100 से ज्यादा बसें अब भी परिवहन निगम दौड़ा रहा है. रोडवेज़ वर्कशॉप पर खड़ी ये बसें रिटायर हो चुकी हैं, इसके बावजूद विभाग है कि यही राग अलाप रहा है कि सब कुछ नियम कायदे से चल रहा है.
उत्तराखंड के भीतर ही क्यों दौड़ रही हैं ये बसें?
इन बसों को दिल्ली, यूपी रूट से हटा दिया गया है क्योंकि वहां इनके चालान होने का डर है. मीयाद पूरी कर चुकीं इन बसों को प्रदेश के मैदानी रूट पर दौड़ाया जा रहा है. रोडवेज़ कर्मचारी बताते हैं, दरअसल 5 साल और 5 लाख किलोमीटर के बाद पहाड़ के रूट में गाड़ी रिटायर कर दी जाती है, जबकि मैदानी इलाकों में 8 लाख किलोमीटर और 8 साल का क्राइटेरिया है.
इसके बावजूद बसें दौड़ाए जाने के सवाल पर निगम के एमडी रोहित राणा ने कहा, बसों को उनकी मीयाद के हिसाब से ही चलाया जा रहा है. जो बसें ठीक हैं वही लोकल रूट पर लगी हैं. इधर, कई बस ड्राइवर ये बसें चलाने से मना कर चुके हैं इसलिए कई बसें तो ट्रांसपोर्ट नगर गोदाम में खड़ी ही रहती हैं. अब अधिकारी भले ही नियमों की बात करें लेकिन रिटायर्ड बसें यात्रियों के लिए तो सिरदर्द हैं ही, पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं.
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