
Fathers Day Special: बॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे कई ऐसी कहानियां छुपी होती हैं, जो शायद ही लोगों तक जल्दी पहुंच पाती हैं. बहुत सारे सितारे, जिन्हें हम पर्दे पर देखते हैं, उनकी सफलता सिर्फ उनकी मेहनत की ही नहीं, बल्कि उनके पिता की लगन और सपनों का भी नतीजा है. उनके पिता ने अपनी मेहनत से जो सिनेमा के पर्दे पर रंग उकेरे, उन्हीं रंगों को उनके बच्चे आगे बढ़ा रहे हैं और उनकी विरासत को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं. फादर्स डे के मौके पर हम कुछ ऐसी हस्तियों की बात करेंगे, जिन्होंने कड़ी मेहनत से अपनी मंजिल तैयार की और आज उसी की छांव में उनके बच्चे जिंदगी का आनंद ले रहे हैं.
रोशन 1948 में मुंबई आए
रोशन: रोशन 1948 में मुंबई आए और कड़े संघर्ष का सामना करते हुए धीरे-धीरे हिंदी फिल्म संगीत में अपनी खास पहचान बनाई. उन्हें पहली बड़ी सफलता 1950 की फिल्म ‘बावरे नैन’ में मिली, जिसने उन्हें बॉलीवुड संगीत की दुनिया में स्थापित किया. 1960 के दशक में उस वक्त उनके करियर को चार चांद लगे, जब उन्होंने लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत का अनूठा मिश्रण अपने संगीत के जरिए हिंदी सिनेमा के पर्दे पर पेश किया. उन्होंने मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर जैसे महान गायकों के साथ काम किया और ‘बरसात की रात’, ‘देवर’, ‘ममता’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के लिए यादगार गीत दिए. रोशन ने न केवल खुद एक मुकाम बनाया, बल्कि अपने बच्चों को भी एक मजबूत स्टारडम दिया.
राकेश रोशन ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया
इसके बाद उनके बेटे राकेश रोशन ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया, लेकिन उनकी दिलचस्पी संगीत में नहीं, बल्कि अभिनय में थी. ‘धनवान’, ‘आवाज’ और ‘आखिर क्यों?’ जैसी कई ब्लॉकबस्टर फिल्में देने वाले राकेश रोशन ने खुद की प्रोडक्शन कंपनी फिल्मक्राफ्ट की स्थापना की. उन्होंने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा, इस दौरान सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने जितनी भी फिल्में बनाई, उनमें से ज्यादातर फिल्म में संगीत उनके भाई राजेश रोशन ने दिया. राजेश रोशन ने अपने करियर में ‘कोयला’, ‘जूली’, ‘करन-अर्जुन’, ‘कहो ना प्यार है’, ‘कृष’, ‘काबिल’ जैसी कई फिल्मों में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर काम किया. फिल्मों में बेहतरीन संगीत देने के लिए उन्हें दो बार फिल्मफेयर बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर के अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.
राकेश रोशन के दो बच्चे
राकेश रोशन के दो बच्चे हैं, ऋतिक रोशन और सुनैना रोशन. ऋतिक बॉलीवुड के टॉप अभिनेताओं में गिने जाते हैं, वहीं सुनैना रोशन बेहतरीन फिल्म निर्माता हैं. यश चोपड़ा: यश चोपड़ा ने हिंदी सिनेमा को खास अंदाज में पेश किया. उन्होंने सहायक निर्देशक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और जल्द ही ‘धूल का फूल’ और ‘धर्मपुत्र’ जैसी फिल्मों से निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनाई. 1973 में उन्होंने ‘यश राज फिल्म्स’ की नींव रखी और ‘दाग’, ‘दीवार’, ‘कभी कभी’, ‘त्रिशूल’, ‘सिलसिला’, ‘चांदनी’, ‘लम्हे’, ‘दिल तो पागल है’, ‘वीर जारा’ जैसी क्लासिक फिल्मों के जरिए भारतीय सिनेमा को एक नया दृष्टिकोण दिया. अपने पांच दशकों के फिल्मी सफर में उन्होंने 50 से ज्यादा यादगार फिल्में दीं और कई राष्ट्रीय और फिल्मफेयर पुरस्कार जीते. उन्हें दादा साहेब फाल्के और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
‘यश राज फिल्म्स’
‘यश राज फिल्म्स’ के रूप में वह अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गए, जिसे आज उनके बेटे आदित्य चोपड़ा और उदय चोपड़ा संभाल रहे हैं. ‘यश राज फिल्म्स’ कई सालों से हिट फिल्में देता आ रहा है, जिसमें ‘बंटी और बबली’, ‘चक दे! इंडिया’, ‘रब ने बना दी जोड़ी’, ‘एक था टाइगर’, ‘टाइगर जिंदा है’, ‘वॉर’, ‘पठान’, ‘धूम 3’, ‘सुलतान’ जैसी फिल्में शामिल हैं.
सलीम खान
सलीम खान ने साल 1960 में आई बॉलीवुड फिल्म ‘बारात’ से बतौर अभिनेता अपने करियर की शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें असली पहचान एक लेखक के तौर पर मिली. अभिनय में खास सफलता न मिलने पर उन्होंने लेखन की ओर रुख किया और यहीं से उनके करियर ने उड़ान भरी. उन्होंने ‘शोले’, ‘डॉन’, ‘जंजीर’, ‘सीता और गीता’, ‘यादों की बारात’, ‘काला पत्थर’ और ‘हाथी मेरे साथी’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों की कहानियां लिखीं, जो आज भी पसंद की जाती हैं. उनकी कहानी लिखने की शैली इतनी शानदार थी कि उन्हें कलाकारों से ज्यादा फीस मिलने लगी थी. सलीम खान ने अपने संघर्ष और लेखनी की ताकत से एक सफल करियर बनाया. साथ ही अपने बेटों सलमान, अरबाज और सोहेल को एक मजबूत विरासत और पहचान भी दी, जो आज फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम रोशन कर रहे हैं.
जावेद अख्तर
जावेद अख्तर ने हिंदी सिनेमा में पटकथा लेखकों को नई पहचान दिलाई. सलीम खान के साथ उनकी जोड़ी ने ‘अंदाज’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘क्रांति’, ‘शक्ति’, ‘दोस्ताना’, ‘लक्ष्य’, ‘त्रिशूल’, ‘सागर’, ‘मशाल’, ‘मेरी जंग’ जैसी बेहतरीन फिल्मों की कहानी और डायलॉग्स लिखे. यही नहीं, उन्होंने ‘पापा कहते हैं’, ‘लगान’, ‘कल हो ना हो’, ‘मैं हूं ना’, ‘रॉक ऑन’, ‘बॉर्डर’, ‘नमस्ते लंदन’, ‘1942: अ लव स्टोरी’, ‘ओम शांति ओम’ जैसी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे, जो काफी लोकप्रिय रहे. उन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर न केवल खुद को स्थापित किया, बल्कि अपने बच्चों फरहान अख्तर और जोया अख्तर के लिए एक ऐसा रचनात्मक माहौल और रास्ता तैयार किया, जिस पर चलकर आज वे सफलता की ऊंचाइयों को छू रहे हैं. फरहान आज एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता हैं, जबकि जोया अख्तर बेहतरीन लेखिका, निर्देशक और निर्माता के रूप में भारतीय सिनेमा में अपनी खास जगह बना चुकी हैं.
अमिताभन बच्चन
अमिताभ बच्चन को यूं ही सदी के महानायक का खिताब नहीं मिला है. इसके पीछे उनका कड़ा संघर्ष है. उन्होंने 1969 में एक वॉयस नैरेटर के रूप में करियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने ‘आनंद’, ‘जंजीर’ और ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों से सफर शुरू किया. वह ‘शोले’, ‘दीवार’, ‘डॉन’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘सिलसिला’ और ‘अग्निपथ’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में बतौर लीड एक्टर नजर आए. फिल्मों में उनके किरदार से लोग उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ कहने लगे. साल 2000 के बाद उन्होंने ‘मोहब्बतें’, ‘बागबान’, ‘ब्लैक’, ‘पीकू’, ‘पिंक’ और ‘बदला’ जैसी फिल्में करके साबित कर दिया कि उम्र महज एक संख्या है. चार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों और सोलह फ़िल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित बच्चन को भारत सरकार ने पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार जैसे सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया. अभिनय के अलावा, उन्होंने टीवी होस्ट के तौर पर भी सफलता हासिल की, खासकर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की मेज़बानी के रूप में. अमिताभ ने अपनी मेहनत, अनुशासन और प्रतिभा से जो कमाया, वह विरासत बन गई और यही विरासत उन्होंने अपने बेटे अभिषेक बच्चन को सौंपी, जो आज इस पहचान को पूरी लगन के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. (एजेंसी)
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